प्रोफ़ेसर से कल रात स्काइप पर लम्बी बात हुई। वे अपने नये प्रोजेक्ट को लेकर संजीदा होते जा रहे हैं। वे युनिवर्सिटी से तीन दिन की छुट्टी लेकर गए थे लेकिन अब छुट्टी बढ़ाना चाहते हैं। चम्बल के बीहड़ उनकी अपेक्षा से अधिक अनुसंधान की मांग करते हैं। भारतीय राजनेताओं और अनुसंधानकर्ताओं ने इस क्षेत्र की समस्याओं की ओर अधिक ध्यान नहीं दिया है। वे देश-विदेश में फैले अपने अनुसंधानकर्ता मित्रों का ध्यान इस क्षेत्र की ओर खींचना चाहते हैं। लेकिन इसके लिए उन्हें अपने उसी कम्युनिकेशन-सिस्टम की ज़रूरत पड़ेगी जो उनके अध्ययन-कक्ष में इन्स्टॉल है। उन्होंने आग्रह किया है कि मैं दो दिन के लिए उनके पास आ सकूं तो वे इस ओर पहल करें। मेरे हां कहने पर उन्होंने मुझे विस्तार से आने और आने से पहले की प्लानिंग समझा दी है।
प्लानिंग के मुताबिक सबसे पहले मुझे उनकी एक प्रेमिका से मिलना होगा। यह सोचकर मैं बहुत रोमांचित हूं कि प्रोफ़ेसर की कोई प्रेमिका भी है और उन्होंने बड़े सहज ढंग से मुझे बता भी दिया। आगे का सारा काम उन्होंने प्रेमिका को समझा दिया है। मुझे बस प्रोफे़सर के फ्लैट से एक ट्रंक लेकर उनके द्वारा बुक किए गए टिकिट पर मुरैना स्टेशन पहुंचना है। वहां से प्रोफ़ेसर मेरे साथ रहेंगे। तकरीबन 5 घंटे की यात्रा के सारे विवरण उन्होंने मुझे समझा दिए हैं और अपनी यात्रा के कुछ चित्र भी भेज दिए हैं ताकि यात्रा सुविधाजनक रहे। इन चित्रों में सबसे अहम है मुरैना स्टेशन का चित्र ताकि मैं स्टेशन को ठीक से पहचान लूं क्योंकि यहां ट्रेन बहुत थोड़ी देर के लिए ही रुकती है।
प्रोफ़ेसर के मुताबिक अभी तक उनकी प्रेमिका का फ़ोन आ जाना चाहिए था। मैं इसी ख़याल से कि थोड़ी चहल-क़दमी हो जाएगी, अपने अपार्टमेंट से बाहर आकर प्रोफ़ेसर के अपार्टमेंट की ओर निकल गया। अपार्टमेंट के बाहर एक छोटा सा पार्क है। सुंदर फूलों से सजा हुआ। ख़ासकर गुलाब की क्यारियां तो देखते ही बनती हैं। मैं एक बेंच पर बैठ गया जहां अच्छी धूप आ रही थी।सर्दियों की धूप का मज़ा ही अलग होता है। गुलाब की क्यारियां देखते-देखते धूप भी गुलाबी होने लगी है। इस गुनगुनी गुलाबी रंगत वाली धूप को भीतर समो लेने के लिए मैंने अपनी आंखें बंद कर लीं। पता ही नहीं चला कब झपकी आ गयी। दुबारा पलकें खुलीं तो मोबाइल देखा। फ़ोन अभी तक नहीं आया था। यह सोचकर कि शायद नेटवर्क की अड़चन से फ़ोन नहीं लग रहा हो, मैंने प्रोफ़ेसर के फ्लैट के लिए लिफ्ट ले ली।
बैल बजाई तो फ्लैट का दरवाज़ा खुला। मैं एक बारगी ठिठक-सा गया। मैंने ख़ुद से ही कहा-ओ माई गोड, शी इज़ सो ब्यूटीफुल। ‘प्लीज़ कम’। मैं उनके पीछे हो लिया। मैं फिर उसी अध्ययन-कक्ष में पहुंच गया लेकिन इस बार वो बात नहीं थी। वे विशाल डिजिटल स्क्रीन्स अब वहां नहीं हैं। कमरे की दीवारें सूनी हैं। लेकिन अध्ययन-कक्ष की मेज़ वैसी की वैसी है। पिछली बार जिस कुर्सी पर प्रोफ़ेसर थे, इस बार उनकी प्रेमिका है। मैंने ध्यान से देखा। गुलाबी रंगत से खिला चेहरा। शार्प फीचर्स। नाक पर हीरे का दमकता फूल।डी एंड जी सनग्लासेज़ के आकर्षक फ्रेम से झांकती सम्मोहक आंखें। धनुषाकार भंवें। कानों की लवों से झूलतीं सोने की बड़ी-बडी बालियां। शायद मैं ठीक से कह नहीं पा रहा। अगर कालिदास होता तो अवश्य कोई छंद रचता। सच कहूंगा इतनी सुंदर स्त्री मैंने पहले कभी नहीं देखी। उन्होंने कहा-कॉफी? मैंने कहा-स्योर।
कुर्सी छोड़कर वे कॉफी-मेकर की ओर मुडीं। मैंने फिर देखा। उनके रेशमी केश गर्दन तक बंधे हुए मग़र सिरों पर खुले हुए। बंध-स्थल पर सुशोभित सूरजमुखी का फूल। क्रोसिए पर बुने कत्थई स्वेटर में कंधों के उभार। सिर से पैरों तक सांचे में ढला फिगर…प्रोफ़ेसर इस सो लकी। वे कॉफी लेकर लौटीं तो मैंने पूछा- आर यू ऑल्सो ए प्रोफ़ेसर? कानों में रस घोलती हंसी के बाद उन्होंने कहा-अरे नहीं, आइ एम ए पोइट, जस्ट ए पोइट। आई वुड लव टू रीड योर पोइम्स। मैंने कहा। व्हाइ नोट? उन्होंने एक स्टूल का दराज़ खोला और अपनी सुंदर उंगलियों से हस्ताक्षरित अपने संग्रह की एक प्रति मुझे भेंट की। संग्रह का टाइटल देखकर मैं चौंका-‘ बैंडिट क्वीन्स ’। फिर मिलने और संग्रह पर प्रतिक्रिया देने का वादा कर मैंने इजाज़त चाही। उन्होंने लोहे का ट्रंक जो मेरी अपेक्षा से हल्का ही था, सौंपते हुए कहा-से माई लव टू प्रोफ़ेसर। स्योर। मैंने एक बार फिर उनके सम्मोहक चेहरे को देखा। अभिभूत कर देने वाला सौंदर्य। बेहद शालीन और बौद्धिक मुस्कान के साथ उन्होंने हाथ हिलाया। मैंने अभिवादन किया और लिफ्ट की राह पकड़ी।
[to be continued..]
सुन्दरता अपरिमित होती है………